Posts

सातवें तीर्थंकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी

Image
सातवें तीर्थंकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकुवंश में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विशाखा नक्षत्र में हुआ था. इनके माता का नाम माता पृथ्वी देवी और पिता का नाम राजा प्रतिष्ठ था. इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था और इनका चिन्ह स्वस्तिक था.      इनके यक्ष का नाम मातंग और यक्षिणी का नाम शांता देवी था. जैन धर्मावलम्बियों के मतानुसार भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी के कुल गणधरों की संख्या 95 थी, जिनमें विदर्भ स्वामी इनके प्रथम गणधर थे.   ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी तिथि को वाराणसी में ही इन्होनें दीक्षा प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया. दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 9 महीने तक कठोर तप करने के बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी को धर्म नगरी वाराणसी में ही शिरीष वृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी.  भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी ने हमेशा सत्य का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का सन्देश दिया. फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन भगवान श्री ...

तीर्थंकर महाप्रभु पद्मप्रभु

Image
🙏🏻 ♦  तीर्थंकर महाप्रभु पद्मप्रभु  ♦ 🙏🏻 द्वीपसमूह की शोभा जम्बूद्वीप..रमणीय कलाओं,मुक्तिवधुके अनंत जीवोका जन्मदात्रा,आज अपने कीर्तिमुकुट की शोभा बढ़ाते हुए आत्यंतिक हर्षित मुद्रामें स्वयंचित्त था। कारण ही असाधारण था,अनंतखंड के अधिपति आज अपने अंतिम भव को लेकर उसके कोख में अवतरित हुए थे।..... इश्वाकुवंश के काश्यपगोत्र धारी राजा धरण आज कौशाम्बी को सुसज्जित कराने स्वयं ही लगे हुए थे।किसी प्रकारकी त्रुटि वह जानना और देखना नहीं चाहते थे।पितृहृदय ही कठोर नहीं होता यह प्रत्यय आज कौशाम्बी की धरा देख रही थी। माता सुसीमा जगतमाता हुयी....अपराजित विमानवासी अहर्मिन्द्र ने आज माता के गर्भ से जन्म लिया था,,पद्मप्रभु नामसे संसार ने जयकारा लगाया...वह पूण्यतिथि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी की थी.... दो सौ पचास अवगाहना से मंडित तथा तिस लाख पूर्व आयुके धारी पद्मप्रभु तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान के नब्बे हजार करोड़ सागर वर्ष पश्चात अवतरित हुए थे। जीवन में सुख का समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चल पाता,दुःख की घड़िया जल्दी नहीं बितती, जीवन में मोड़ कब आये बताना असंभव सा होता है,ठीक ऐसा...

जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर : सुमतिनाथ

Image
जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ हैं। सदैव अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देने वाले सुमतिनाथ जी का जन्म वैशाख शुक्ल अष्टमी को मघा नक्षत्र में अयोध्या नगरी में हुआ था। इनके माता- पिता बनने का सौभाग्य इक्ष्वाकु वंश के राजा मेघप्रय और रानी सुमंगला को मिला। प्रभु के शरीर का वर्ण सुवर्ण (सुनहरा) था और इनका चिह्न चकवा था। प्रभु सुमतिनाथ के यक्ष, यक्षिणी का नाम तुम्बुरव, वज्रांकुशा था। सुमतिनाथ का जीवन परिचय (Life of Sumtinath Ji in Hindi) युवावस्था में भगवान सुमतिनाथ ने वैवाहिक जीवन संवहन किया। प्रभु सुमतिनाथ जी ने राजपद का पुत्रवत पालन किया। पुत्र को राजपाठ सौंप कर भगवान सुमतिनाथ ने वैशाख शुक्ल नवमी को एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा अंगीकार की। बीस वर्षों की साधना के उपरांत भगवान सुमतिनाथ ने ‘कैवल्य’ प्राप्त कर चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर पद पर आरूढ़ हुए। असंख्य मुमुक्षुओं के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करके चैत्र शुक्ल एकादशी को ही सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया। सुमतिनाथ का चिह्न (Importance of Symbol in Hindi) प्रभु सुमतिनाथ का चिह्न चकवा...

अभिनंदननाथ चौथे तीर्थंकर

Image
अभिनंदननाथ चौथे तीर्थंकर तीर्थंकर अभिनंदननाथ की प्रतिमा विवरण एतिहासिक काल १ × १० २२३  वर्ष पूर्व गृहस्थ जीवन वंश इक्ष्वाकु पिता सन्वर माता सिद्धार्था पंच कल्याणक जन्म माघ शुक्ल १२ जन्म स्थान अयोध्या मोक्ष वैशाख शुक्ल ७ मोक्ष स्थान सम्मेद शिखर लक्षण रंग स्वर्ण चिन्ह बन्दर ऊंचाई ३५० धनुष (१०५० मीटर) आयु ५०,००,००० पूर्व (३५२.८ × १० १८ वर्ष) शासक देव यक्ष ईश्वर यक्षिणी काली

भगवान सम्भवनाथ जी: जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर

Image
भगवान सम्भवनाथ जी, जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर हैं। प्रभु सम्भवनाथ का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल 15 तिथि को श्रावस्ती के नगरी राजा जितारि के घर हुआ था। सम्भवनाथ जी के जन्म की कथाएं (Stories of Jain Trithankar- Sambhavnath Ji) गर्भावस्था के दौरान सम्भवनाथ जी की माता ने चौदह मंगल स्वप्न देखे। भगवान सम्भवनाथ का चिह्न अश्व (घोड़ा) था। कहा जाता है कि एक बार क्षेमपुरी के राजा विपुलवाहन के राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। पानी की बूँद- बूँद के लिये जनता तरस रही थी। राजा ने धान्य भंडार प्रजा के लिये खोल दिये और प्रजा की तृष्णा शांत करने लगे। बुरे समय में राजा कई बार बिना अन्न ग्रहण किए सो जाता और प्यासे कंठ से ही प्रभु की आराधना करता। कुछ समय पश्चात राज्य में वर्षा हुई और बुरा समय खत्म हो गया, किन्तु प्रकृति का यह प्रकोप देखकर राजा का मन संसार से विरक्ति हो गया और अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वह साधु बन गये। साधु विपुलवाह को मोक्ष प्राप्त हुआ और वहीं से श्रावस्ती नगरी में भगवान सम्भवनाथ के रूप में अवतरित हुए। सम्भवनाथ का जीवन परिचय  कहा जाता है कि महाराज सम्भवनाथ जी को संध्याकालीन बादलों को...

अजितनाथ : द्वितीय तीर्थंकर

Image
अजितनाथ  जैन धर्म के २४ तीर्थकरो में से वर्तमान अवसर्पिणी काल के द्वितीय तीर्थंकर है।अजितनाथ का जन्म अयोध्या के राजपरिवार में माघ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी में हुआ था। इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था। अजितनाथ का चिह्न हाथी था। जैन ग्रन्थों के अनुसार द्वितीय तीर्थंकर, अजितनाथ का जन्म प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के जन्म के बाद 50 लाख करोड़ रूपए सागरोपम और 12 लाख पूर्व बीत जाने के बाद हुआ था। उनकी ऊंचाई 450 धनुष थी। उन्होंने 18 लाख पूर्व युवा अवस्था (कुमारकाल) में व्यतीत किए। उन्होंने अपने राज्य पर 53 लाख पूर्व और १ पूर्वांग तक शासन किया (राज्यकाल)। उन्होंने १ पूर्वांग कम १ लाख पूर्व काल संयम साधना में व्यतीत किया (संयमकाल)। भगवान अजिताथ की कुल आयु 72 लाख पूर्व की थी। के राजपरिवार में माघ के शुक्ल पक्ष की अष्टमी में हुआ था। इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था। अजितनाथ का चिह्न हाथी था। जैन ग्रन्थों के अनुसार द्वितीय तीर्थंकर, अजितनाथ का जन्म प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के जन्म के बाद 50 लाख करोड़ रूपए सागरोपम और 12 लाख पूर्व बीत जाने के बाद हुआ था। ...

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ

Image
जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। उन्हें ऋषभनाथ भी कहा जाता है। उन्हें जन्म से ही सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान था। वे समस्त कलाओं के ज्ञाता और सरस्वती के स्वामी थे। युवा होने पर कच्छ और महाकच्‍छ की दो बहनों यशस्वती (या नंदा) और सुनंदा से ऋषभनाथ का विवाह हुआ। नंदा ने भरत को जन्म दिया, जो आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बने। उसी के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा (जैन धर्मावलंबियों की ऐसी मान्यता है)। आदिनाथ ऋषभनाथ सौ पुत्रों और ब्राह्मी तथा सुंदरी नामक दो पुत्रियों के पिता बने। भगवान ऋषभनाथ ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले असि (सैनिक कार्य), मसि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या, शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। कहा जाता है कि इसके पूर्व तक प्रजा की सभी जरूरतों को क्लपवृक्ष पूरा करते थे। उनका सूत्र वाक्य था- 'कृषि करो या ऋषि बनो।' ऋषभनाथ ने हजारों वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया फिर राज्य को अपने पु‍त्रों में विभाजित करके दिगम्बर तपस्वी बन गए। उनक...